"सभी हुए बेनकाब "
"सभी हुए बेनकाब "
मनुज मुखौटा पहनकर, घूम रहा है आज
सुख उसके गायब हुए, हांफ रहा बिन काज
हांफ रहा बिन काज, फिरे वो मारा मारा
छुपा रहा हर राज, भक्त बगुला बन हारा
ठीक करें सब काम, कष्ट का भगे भरोटा
सभी हुए बेनकाब, पहन रखा था मुखौटा।
