STORYMIRROR

Chitra Yadav

Romance

4  

Chitra Yadav

Romance

सौरभ

सौरभ

1 min
446

शायद याद हो तुम्हें

इस रोज की तरह

उस रोज भी

शाम बैठी थी दिन के किनारे पर


तुम्हारी उंगलियों में

अपनी उंगलिया उलझाते हुए

मैंने कहा था-

"कभी कभी मुझमें से

तुम्हारी खुशबू आती है।"


शायद याद हो तुम्हें

तुम मुस्कुराये थे

और हमारी सांसे उलझी थीं

तुम्हारी साँसों से पिघल कर "सौरभ"

मेरे जिस्म में उतर गया था


शायद याद हो तुम्हें

वो सुरमई शाम

कल ही वो दुष्ट हवा मेरे जिस्म से

वो " सौरभ " चुरा ले गई है

ज़रा पूछो इस शाम से

ये चुप क्यों है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance