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कवि धरम सिंह मालवीय

Abstract Romance

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कवि धरम सिंह मालवीय

Abstract Romance

सौंदर्य

सौंदर्य

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प्रेम का हो आधार तुम्ही

हो ह्रदय का उदगार तुम्ही

सृजनता तुम्ही में बस्ती हैं

रचती सकल संसार तुम्ही


तुझमें लय हैं संसार सकल

प्रेम का करती प्रसार सकल


तेरा दर्शन जो पाते हैं

वो तुझमे ही रम जाते हैं

देख कर छवि मनोहर तेरी

वो तुझमे ही खो जाते है


दीपशिखा सा तन हैं तेरा

निर्मल जल सा मन है तेरा

चुरा नही ले तस्कर कोई

यौवन का यह धन हैं तेरा


बिंदिया भाल पर सजाती हैं

दिल पर दामनी गिर जाती हैं


नैनो में तेरे काजल हैं

लगे अम्बेर में बादल हैं

नथनी में रत्न यूँ सजा हैं

आसमान में चंद्र खिला हैं


अधर लगे ज्यों सरोज कली

यू लगे अमिया हो रस भरी

काली घटा सी बेनी लगी

शूल समान वह पैनी लगी


बाजू लगे तरु की डाली

झोंक लगे तो झुकने बाली

लगे कलाई छुओ मलाई

स्वेत गगन ने हिना रचाई


 अंक लगे तरु पल्लव डाली

 सोहे रजत करधनी न्यारी

 पैरों में नुपूर व महावर

चलत जबही धुन लगे प्यारी


जैसा रूप देखा बह वर्णा

रहे ऋतु सब तेरी शरणा

लिखे धरम कवि कविता तुझ पर

यौवन रूप की करके गणना।


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