साथी और समाज
साथी और समाज
है अतुल्य जीवन का रिश्ता,
टूटे से नहीं टूटता है।
चाहे कितने तूफाँ आये ,
मंजिल सबको मिलती है।
कटुता कुंठित करती है,
क्षण में मलिन हुए जाते हैं।
पर हृदयतंत्र मानो,
आपस में बंध जाते हैं।
कुछ क्षण मानो राग द्वेष का,
चाहत हृदय में उभरती है।
पर थोड़े ही क्षण में मानो,
प्यार प्रगाढ़ उमड़ता है।
दूर किनारे रहना मुश्किल,
जग में अकेले रह नहीं सकते।
चाहे कितने दूर हो जाओ,
साथी समाज को तज नहीं सकते।
