सारा घर थे बाबूजी 😔
सारा घर थे बाबूजी 😔
कहाँ से शुरू करूँ
समझ नहीं आता
कितना ही कहूँ
कम ही लगता है
कितने से समय में कितना सब कुछ बदल गया
बात बात पर ज़िद करने वाली आपकी बेटी ने
अब सबर करना सीख लिया।
छोटी छोटी बात पर आंसू निकल आते थे जिसके
आज उसने आंसुओ को पीना सीखा लिया।
पर कैसे जीना है आपके बिना, ये नहीं सीख पायी।
अकसर जब शाम होती है, छत पर ढलते सूरज को देख यही सोचती हूँ।
अभी आयेंगे बाबा, मेरे लिये ढेरों तोहफ़े लेकर।
ज़ोर से दरवाज़े पर से मुझे आवाज़ लायेंगे। छोटी आना तो ज़रा
मेरे कदम दरवाज़े की और दौड़े जाएँगे।
आख़िर में पर ये मेरा भ्रम ही होगा।
कहाँ हो आप हर बार एक फ़ोन कर
हाज़िर हो जाते हो
आज बार बार फ़ोन लगा रही हूँ।
घंटी तो जाती है पर कोई फ़ोन उठा नहीं रहा है।
मैं जो कुछ आप की ही बदौलत हूँ।
पापा सपने सारे सच हो रहे है
पर कहीं क्यू नहीं दिखायी दे रहे है।
आज भी आपकी बेटी को कई अवार्ड और मेडल मिलते है
पर आपके हाथ अब शाबाशी से मेरी पीठ नहीं थपथपा रहे है।
जब आप थे तो कितने अच्छे थे दिन।
किसी बात की कोई फ़िक्र ही थी नही
अब तो छोटी छोटी चीज़ों पर भी हज़ार बार सोचना पड़ता है।
क्यूँकि कोई गलती हो हुई तो अब कोई संभलाने वाला नहीं।