कड़क चाय का कप हो एक ।।
कड़क चाय का कप हो एक ।।
सपनों का एक छोटा घर हो
ख़ाली मन
ना कोई उलझन हो।
कड़क चाय का कप हो एक
कोमल सा एक नरम बिस्तर हो।
धीमा धीमा गीत गुनगुनाये
कोई तो हो
जो मन को लुभाये
छोड़कर सबको
क्यों ना रात में तारो को निहारा जाए
चलो किसी बहाने से मिला जाए
एक दिन तो खुद के लिए निकाला जाए।
आँगन में गिरते पेड़ के पत्तों को निहारा जाये
तुझे याद कर के
तेरा नाम लेकर झूमा जाए
चाँदनी रात में चाँद के सामने तुझे चाँद कहा जाये
देर रात, तेज बारिश कड़कती बिजली में मारे डर के तेरा मेरे सीने से लगा जाए
रास्ते में चलते वक्त
तेरी मेरा हाथ पकड़े रखने की वो आदत को इश्क़ कहा जाए
यूँ तो माँगती हूँ
मौत अक्सर दुआओं में मैं
अगर जो मिल जाओ तुम
तो एक जन्म और जीया जाए।
