मेरे पिता के झुकते कंधे और माँ की झुर्रियाँ
मेरे पिता के झुकते कंधे और माँ की झुर्रियाँ
मेरे बाप के झुकते हुए कंधे
हर दिन मुझे जवान करते है।
माँ के चेहरे पर पड़ती हुई
झुर्रियाँ, मेरी आँखें नम करती है।
चंचलता से मन, वीरान गति में जाने लगता है।
एकदम से एहसास होता है।
की बुढ़ापा जीवन का आख़िरी दौर होता है।
जीवन की सबसे मजबूत इमारत के गिर जाने का डर सताने लगता है।
जीवन से ये रौनक ख़त्म नहीं होनी चाहिए।
घर में माँ बाप की आवाज़ हमेशा आती रहनी चाहिये।
मेरी ख़ुशियों के लिए अपनी ज़िंदगी जिन्होंने बलिदान में लूटा दी
मेरे बाप की जेब कभी भी भरी हुई नहीं थी, माँ ने हर त्योहार पर अपनी पुरानी साड़ी ही सिली थी।
