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meghna bhardwaj

Abstract

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meghna bhardwaj

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ज़िंदगी दो पल की

ज़िंदगी दो पल की

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अपनी तो दास्तान ही पुरानी है

हाथों में तो कलम और श्याहि है

पर आँखो में ग़म की कहानी पुरानी है

कुछ पलो में सिमटी हुई ये पूरी ज़िंदगी है


कुछ पलो में ग़म तो कुछ पलो में ख़ुशी है

एक तरफ़ कोई हाथ पकड़ने को खड़ा है

तो दूजी ओर कोई गिराने को


कहीं उत्साह है कुछ पाने का तो

कहीं डर है किसी अपने को खो देने का 

कहीं इंतेज़ार है किसी का तो

कहीं बहुत जल्दी है किसी को भेजने की


काग़ज़ की कसती है ज़िंदगी

मौत के आने की मोहताज है ज़िंदगी 

कभी भगवान के आगे जुड़े हाथ है

तो कभी माँ के चरणो की धूल है ज़िंदगी।


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