ख़ुद की ख़ुद से कैसी ये जंग है?
ख़ुद की ख़ुद से कैसी ये जंग है?
ख़ुद परेशान हूँ ख़ुद से
पछतावा होता है मुझे
क्यू मैं आज तक ख़ुद को ही सजा देती रही॥
किसी को मेरे कारण तकलीफ़ ना हो
इसलिए चुपचाप सबकुछ सहती रही
कोई आँसू देखकर कमजोर ना समझ ले
इसलिए झूठा मुस्कुराती रही
किसी को ये ना लगे की अकेली हूँ मैं
इसलिए बेवजह भीड़ का हिस्सा बनती रही।
कभी मन से कभी बेमन से
पर मैं हमेशा सबके साथ खड़ी रही।
कभी रूमाल बनकर किसी के आँसू पोंछे
तो कभी किसी को हँसाने के लिए ख़ुद मज़ाक़ बनी।
अच्छे के साथ अच्छा
तो कभी
बुरे के साथ भी अच्छी रही।
पर आज जब देखती हूँ अपना अकाउंट
तो ज़ीरो ही बैलेन्स आता है
क्यूँकि जो इंसान सबके लिए सब कुछ चाहता है
अंत में उसके खुद के पास कुछ नहीं बचता।
