ख़ामोश लफ़्ज़
ख़ामोश लफ़्ज़
जिसने हाथ पकड़ा था कभी
आज उसी में धुतकारा है
बात ये नहीं है
की तू बदल गया है
फ़र्क़ है तो ये की तू अब वो पहले वाला शख्स ही नहीं रहा है
आया कोई नया ज़िंदगी में
तो मुझे भूल गया है
जगह थी कभी मेरी दिल में जो तेरे
तो आज तूने अपना दिल ही निकाल फेंका है
जो पहले हर छोटी छोटी ग़लतियों पर भी डाँटता था
आज मेरे बड़े से बड़े जुर्म पर भी सिर्फ़ ‘ठीक है’ कहकर रह गया है
आज मेरी ख़ामोशी लोगों को सताती है
कल को ज़्यादा बोलना भी मेरा हर किसी को खटकता था
मैं तो हंसकर बातो को टाल दिया करती थी
अब चेहरे पर मुस्कुराहट रखकर
हर दर्द पी जाती हूँ
कहती किसी से कुछ नहीं
पर मैं अपनी ख़ामोशी के ज़रिए बहुत कुछ बताना चाहती हूँ
