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meghna bhardwaj

Abstract

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meghna bhardwaj

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मेरे घर की रौनक़ कहाँ गई ?

मेरे घर की रौनक़ कहाँ गई ?

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लौट आओ ना

तुम्हारे बिना घर घर नहीं लगता

सजने संवरने का भी अब तो मेरा मन नहीं करता।

ना तारीफ़े होती है अब

ना कोई कुछ फ़रियाद करता है

तुम्हारे बाद अब घर में मुझसे कोई बात ही नहीं करता है।


तभी तो सब के बीच भी

दिल तुम्हीं को याद करता है।

सुना सुना सा ये समा लगता है

तुम्हारे बिना अब मन कहाँ लगता है

जैसी तुम्हें चाहिए थी बिलकुल वैसी हो गई हूँ

पर अफ़सोस तुम्हीं से दूर हो गई हूँ।


जब भी उदास होती हूँ

तुम्हारी मुस्कुराहट याद आती है।

और हर बार की तरह मेरी पलके नम हो जाती है।

दूर रहकर अब समझ आ रहा है

तुम्हारे कितना क़रीब थी मैं।

और शायद तुम्हारा नसीब नहीं

अतीत थी मैं

ख़ुद को क्यों क़ैद सा कर लिया मैंने

बाहर जाने को भी कहीं अब दिल नहीं करता।


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