साक़ी
साक़ी
किस्सा ए उल्फत दर्द अंगज़ है साक़ी
की बिश्यार माशुकम खुँ रेज़ है साक़ी
दर्द अंगज़ ( दर्द बढ़ा देने वाला )
माशुकम ( मेरा माशुक )
खुँ रेज़ ( खून बहा देने वाला )
दर ब दर की दास्तां सुनने सुना ने के
लायक नहीं के वो तेग ए चंगेज़ है साक़ी
पिया क्या उसका जाम ए खुमार हमने
सुबू दर सुबू तर ब तर सम आमेज़ है साक़ी
सम आमेज़ ( जहर में मिला हुआ )
निगाह से निगाह मिलती नहीं अब ऊन से
वो निगाह ए जाना निगाह ए नेज़ है साक़ी
निगाह ए नेज़ ( बरछे की तरह तेज़ निगाह )
मैं 'हसन' यूं हीं नहीं कहता कातिल उन्हे
के वो खंजर ए चंगेजी बहुत तेज़ है साक़ी।