साजन तेरे संग में
साजन तेरे संग में
साजन तेरे संग में
माँ शारदे को नमन--
काव्य रचना
शीर्षक --*साजन तेरे संग में*
आया मौसम बारिश का बैरी सजनवा तुम परदेश में,
आशा भरी तमन्ना जागी जिया पल-पल तेरे संग में।
पुष्प पत्तियाँ निखर गई हैं कच्चे कचनार महका रहें,
दामिनी तड़के जिया जब काँपें भीगी रूत बहकी लगे।
तन मन में सोंधी खुशबू तेरे मिलन को प्रेम दीवानी है,
बाहर भीतर सब ओर मैं भीगी सपने बुनती हूँ रंगीले।
अगर सुनते दिल की तरन्नुम संग डूबते छैल छबीले।।
बाहर बूंदों की छम-छम भीतर के अहसास भी हैं गीले,
झंकृत अन्तस तार सितार मखमली ख्बाब नीले पीले।
दूर हो आँखों से बेशक पर दिल में ही पलछिन रहते हो,
मेरे हमसफ़र स्मृति पटल तूलिका में अक्सर उभरते हो।
बाहर उमड़ते पयोधर का शोर धडके धड़कनों का जोर,
काश सुनते दिल की तरन्नुम ख्बाब बुनते संग सजीले।
खिड़की से झांकते घरोंदे परिंदों ने प्रीत से बसाये थे,
डायरी कागज कलम से दिल ने यादों के दायरें बनायेथे।
तुम गुमशुदा नहीं थे झंकृत तार से हिया में गुनगुनाये थे,
यादों की बारात में चादर की सिलवटों से सिमटाये थे।
दिल्लगी तो नहीं ये पास हरदम लगते क्यों परवानें से,
काश सुनते दिल की तरन्नुम ख्बाबों में झूमते मस्तानें।
हरी चाय के कप संग में मृदु चाशनी भीगी तेरी यादें हैं,
मेज पर बिखरी चहुँओर साथ बिताई मीठी रातें वादें हैं।
अब के बरस आ जाओ अब ना तड़पें तेरी जोगनियाँ,
मधुर मुरली तेरी बोली ठिठोली हरपल बाजे मेरे अँगना।
दूर हो पर करीब लगते मन को मेरे कोई भरम नहीं है,
काश सुनते दिल की तरन्नुम धड़कन में गुंथी माला से।