साजिश
साजिश
सपने जितने आंखों ने देखा
दिल ने किया सलाम
अपने अन्दर बुलाया उन्हें
मन को भेजा पैगाम।
उन सपनों को गले लगाके
किया उनका सम्मान
किया उनकी खातिरदारी
बनादिया मेहमान।
दिल की खुशियां झूम उठी
और संग मिले अरमान
दिल में दबी चाहतों का
होने लगा उत्थान।
दिल में मची शोर से हुई
तक़दीर को जलन
अनहोनी के साथ मिलके
किया वह परेशान।
अचानक आइ बाढ़ ऐसी
खाली कर दी मैदान
नासमझ तक़दीर ने किया
दिल का यूं अपमान।
सपने सारे बहगये
बनके आंसु की शान
खो गई सारी खुशियां
और मिट गए अरमान।
निराशा के गुमसुम चेहरे पर
खिल गई मुस्कान
दिल को बहलाने आ गई
दिखाने झूठी एहसान।
