साइकिल
साइकिल
कॉलेज के पास चाय की टपरी पर
एक बुजुर्ग , अधटूटे से मुढ्ढे पर बैठकर
नेताओं के निकम्मेपन पर "दहाड़" रहे थे
"कट" चाय की चुस्कियों में खोये हुए
सामने वाली सड़क पर मेले के बीच
आने जाने वालियों को "ताड़" रहे थे ।
कि एक हुस्न परी तेज साइकिल चलाते हुए
अपने रेशमी दुपट्टे को हवाओं में लहराते हुए
घनी जुल्फों की खुशबू से सबको महकाते हुए
दिलों पर बुलडोजर चलाते हुए उधर से गुजरी
आंखों के रास्ते से वह सीधे ही दिल में उतरी ।
तो अचानक ही मेरे अधरों से "हाय" निकल गई
सुंदरी पर नहीं साइकिल पर ही नीयत फिसल गई
भौंहों से भी अधिक कातिल उसका हैंडल था
अप्सरा के चरणों से भी कोमल उसका पैडल था
बांकी उठान "कमरिया" से भी अधिक कंटीली थी
घंटी की टन टन लता जी से भी अधिक सुरीली थी
साइकिल का "फिगर" मन को मतवाला बना रहा था
"कैरियर" हमारे दिल को "निवाला" बना रहा था
"सीट" नाभि की तरह कुछ कुछ दिख रही थी
मन में ख्वाहिशों के हजारों समन्दर भर रही थी
"सर सर" की ध्वनि कानों को भली लग रही थी
वह षोडशी, नवयौवना, मनचली सी लग रही थी
काश ! ऐसी ही कोई साइकिल हमें भी मिल जाये
तो हमारे दिल की भी एक एक कली सी खिल जाये

