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SUNIL JI GARG

Abstract Comedy

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SUNIL JI GARG

Abstract Comedy

अखबार में छपकर बने सुपरहीरो

अखबार में छपकर बने सुपरहीरो

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एक बार अखबारों में लिखा जाऊं

हसरतें अब हो चुकी हैं पूरी 

फिर चाहे रद्दी में बिकुं गम नहीं 

पीदियाँ कहेंगी, हमारे वो मशहूर थे 


मशहूर सुपर हीरो सा होता है फील 

हर कोई आपके साथ सेल्फी लेता है

ऑटोग्राफ मांग लेता है वो 

आपको बदले में बड़ा आदर देता है


एक बार वोटिंग की लाइन में था लगा 

तभी कई रिपोर्टर आये फिर वहाँ

तस्वीर उतरीं उन्होनें कई सारी 

अखबार में वो छपी, खड़ा में जहाँ 


मुझको ऐसे ही आया करते सपने 

सुपरहीरो जैसे कूदता हूँ पहाड़ से 

अखबार में छपा करता हूँ अक्सर 

बचा लेता जब किसी को बाढ़ से  


इसको कुछ लोग कहता हैं छपास की चाह 

अब मुझमें ये है तो करूं क्या 

कुछ भी कहिये मेरे भीतर के सुपरहीरो को

आपसे मैं काहे को डरूं क्या ।


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