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SANDIP SINGH

Comedy

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SANDIP SINGH

Comedy

हँस भई हँस

हँस भई हँस

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आओ पल दो पल हम तुम,

कुछ खुशियां मनाएं।

इस वृद्धावस्था में तुम्हें,

रोटी बेलना बताएं।


सिखाएं प्रिय पाक कला, 

हमारे हमसफर हमराही।

निवृत हुए हम अपनी लौकिक,

जिम्मेदारियों से।


बच्चे कमाने खाने लगे,

अब हुए हमारे,

पोप ले गाल।


नदारद दंत पंक्ति,

बड़े बुरे हाल।

मगर रहें खुशहाल,

चहकते दमकते खिलखिलाते।


इस अवस्था में भी,

अपने जवान,

बहू बेटों को चिढ़ाते।


अब अंतिम समय जो भी बचा है, 

मजे से बिताएंगे।

इस वृद्धावस्था के,

अनमोल समय को,

हंसी ख़ुशी ठिठोली करते।


यूं ही रोटियां बेलते,

भारत का नक्शा,

कुछ ऐसा बनाएं कि,

दुनिया वाले समझ न पाएं।


हमारा देश, 

इतना बदल गया है,

इसका प्रतिदिन,

कितना विस्तार हो रहा है।


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