खुशी
खुशी


कभी कभी मैं सोचता हूं
की खुशी क्या है
कहा मिलती है
कैसे मिलती है
अच्छे अंक लाए
खुशी मिली ?
अच्छी नौकरी मिली
खुशी मिली ?
पैसा शोहरत मिली
खुशी मिली ?
अंकों के लिए दिन रात
मेहनत करता रहा
नौकरी मिली
घंटो ऑफिस में
समय व्यतीत
काम काम काम !
सब मिल तो गया
फिर परेशान क्यों
रात को नींद नहीं
बॉस से डांट का डर
वही ऑफिस
वही रोज का ढर्रा काम
सुबह उठा तो ऑफिस
शाम आ
या तो थकावट
फिर वैसे ही सो जाना
फिर से मॉर्निंग में
धीरे से उठ जाना
सच में चेहरे से
मुस्कान गायब रहने लगी
अब फिर से वही प्रश्न
क्या खुशी मिली ?
समाज की खुशी में
खुद की तलाशना
अच्छे बुरे के फेर में
सब कुछ बरबाद किया।
समझ में आ रहा था
कृत्रिम खुशी का चक्र
समाज के बंधन से
बंधा खुशी का हर पल
जाने क्यों लगने लगा
भूल गया खुद का चेहरा
उचित अनुचित के फेर में
जंजीरों से जकड़े
इन रिवाजों में।