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Dr. Poonam Verma

Inspirational

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Dr. Poonam Verma

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साहस का परचम

साहस का परचम

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"तुम्हारा नाम क्या है?"

 "वर्षा ,बरखा, मेघा , बिजली क्या फर्क पड़ता है ?"

 "सच में कोई फर्क पड़ता है क्या?"

 "तुम्हारी अक्ल और औकात की परिधि,

 तुम नहीं तुम्हारा स्त्री देह है ।"

"याद है, तुम्हें पूर्णमासी की वह रात ,

 चैत की बहती ब्यार 8मार्च का दिन ।

बस वाले की गलती से गंतव्य से पहले उतरना

तब किस डर से भर आई थी तुम्हारी आंखें?

तुम्हेंमालूम था, तुम्हारे होने की पहचान की परिधि

 तुम नहीं तुम्हारा स्त्रीदेह है ।

अन्न उपजाकर , पेट भरकर मानव जीवन को ,

सभ्यता की नई उजास तुमने ही दिया ।

आज सभ्य समाज की गवाह,

ऊंची- ऊंची अट्टालिकाओ, बड़े-बड़े पोस्टरों और दूधिया लट्टू  से निकलते रोशनिओं के बीच 

दृष्टि से छुपने की कोशिश करती ,

परिधि में तुम नहीं तुम्हारा स्त्री देह है।

स्वयं को कुदृष्टि से बचाने के लिए 

दुपट्टा को घुंघट बनाते हुए अंतर्दृष्टि में कौधा विचार क्यों न दुपट्टे को मैं परचम बना लूं

 डर की जगह साहस ने लिया गहरी उच्छ्वास ले ,

जो आगे बढ़ी थी उसमें जो थी वह तुम ही तुम थी ।


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