Shital Yadav

Tragedy

3  

Shital Yadav

Tragedy

रवायत

रवायत

1 min
261


कभी-कभी ज़िंदगी यूँ मुश्किल लगती है

उलझनों से निजात पाने की कोशिश में

अतीत आकर खड़ा हो जाता है अक्सर

दर्द का समंदर डूबोता है जैसे साज़िश में


जाने क्यों ख़फ़ा हो जाते हैं ये लम्हें हमसे

दर्द करने लगता है तकदीर की शिकायत

शौक से नहीं है हमने ग़म को गले लगाया

बरसों से चली आ रही थी दर्द-ए-रवायत


होकर मजबूर वक़्त के हाथों यूँ जज़्बात

दिल फिर भी धड़कता रहा तुम्हारे लिए

देखा जमाने को हमने हर रंग बदलते हुए

कसूरवार ठहराकर दर्दे दिल हमें सारे दिए


रग-रग में शामिल हो इस कदर तन मन में

मौत भी चाह कर न कर सकेगी हमें जुदा

इबादत मुहब्बत की हम ताउम्र करते रहेंगे

यकीनन क़िस्मत को बदल देगा मेरा ख़ुदा


अतीत के सायों में मौजूदा समय है ढलता

सबको रूबरू कराता दिल की दास्तान से

चाहे जितनी भी सदियाँ बीत जाएगी मगर

रहेगा ज़िंदा मुकद्दर यहाँ प्यार के पहचान से



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy