रूपहली रातें
रूपहली रातें
नीले स्याही से लिखा खत
स्वर्णिम पृष्ठ बन गया है
अक्षर तुम्हारे मोतियों से
पारस बन गया है
छू कर बन जाती हूं सोना
पढ़कर गुम हो जाती हूं
सपनों की दुनिया में
बेखबर होकर खुद से
अतीत में खो जाती हूं
सुनहरे दिन और रूपहली रातें
साथ हम मगर दूर दूर ......
कभी दूर-दूर और बेहद करीब।

