ऋतुराज वसंत
ऋतुराज वसंत
हे ऋतुराज वसंत तुम्हारे स्वागत में जन मन हर्षित है
आशा पल्लव पुष्प बने है धरा गगन सब वासंती है।
प्रकृति की है छटा निराली फैली है हर सूं हरियाली
बाग बगीचे सजे हुए हैं आई ऋतुराजा की सवारी।
रंग-बिरंगे सुमनों से महाराजा का दरबार सजा है
मंडराते मधुपों ने जैसे गुन- गुन कर संगीत दिया है।
तरुओं ने भी हिल-हिल कर संगीत पे जैसे ताल दिया है
महका-महका सारा प्रांगण खुशियों से भर देता अंग-अंग।
जीवन उल्लासित लगता है हर दिन उत्सव सा सजता है।
हे ईश प्रार्थना एक करूं मैं कर लो तुम इसको स्वीकार
मेरे देश्वासियों के हृदयों में भर दो तुम अपना अनुराग ।
