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Salil Saroj

Tragedy

3  

Salil Saroj

Tragedy

रोती रही प्रकृति

रोती रही प्रकृति

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काश कि कभी

हमें भी बुलाया होता

तुमने अपनी सभाओं में,


जहाँ तुम

गद्देदार कुर्सियों में धँसकर

वातानुकूलित कमरों में जमकर

हमारे लिए

परेशान होते हो।


टी. वी. पर हमें

चिलचिलाती धूप में 

जलता देखकर

हैरान होते हो।


जहाँ हमें बचाने के लिए

तुम गीत गाते हो

नाचते हो

जश्न मनाते हो

और घर जाकर सब भूल जाते हो।


हमें बुलाते तो

हम बताते कि

सबका कारण तुम्हीं हो

अपने लालच में,


तुम सब भूल गए हो

धरती का सीना चीरकर

सारा खून पी गए हो

नदियों के माथे का 

सिंदूर पोंछते भी गए हो


और हवाओं की ज़ुबाँ तक को 

धुआँ के नस्तर से सी गए हो।


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