रोते रोते हँस जाते थे...
रोते रोते हँस जाते थे...
हम हतभाग्य पौंछते आये,
आँसू खुद अपने हाथों से...
खुद को रहे दिलासा देते,
हम खुद ही झूठी बातों से...
रातों-रातों सपने बुनते,
सपने मन को कस जाते थे...१...
चना-चबैना की जुगाड़ ही,
करते गई उमर ये सारी...
क्या है जीवन लक्ष्य हमारा,
पूछ रहे हमसे संसारी...
खुद ही गाते खुद ही सुनते,
गीत हृदय में बस जाते थे...२...
फिर तुम आये जैसे बादल,
आ मरुथल के भाग सँवारे...
अमावसों के घर में झाँके,
पूरणमासी के उजियारे...
तीखे तीर नयन कजरारे,
बरबस उर में धँस जाते थे...३...
