रंगरेज़
रंगरेज़
तुममें ही डुबो बैठे
तुम सा ही कलम,
अब लिखने को बचा ही क्या ?
तुम ही तुम उभरे
खू़ब उभरे
लफ़्ज़-लफ़्ज़
रंगरेज़ हुआ काग़ज़
छिड़क चले बूंद-बूंद
पसर गये एहसास।
तुममें ही डुबो बैठे
तुम सा ही कलम,
अब लिखने को बचा ही क्या ?
तुम ही तुम उभरे
खू़ब उभरे
लफ़्ज़-लफ़्ज़
रंगरेज़ हुआ काग़ज़
छिड़क चले बूंद-बूंद
पसर गये एहसास।