रमज़ान
रमज़ान
पैग़ाम रहमतों का लेकर,
आ रहा रमज़ान है।
मांग लो मग़फ़िरत अपनी,
कह रहा क़ुरआन है।
भूख प्यास महसूस करो मुफ़लिस की,
यही तो पैग़ाम दे रहा रमज़ान है।
कैसे अज़मत बयां करूँ उस माह की,
जिसमे में नाज़िल हुआ क़ुरआन हैं।
रोज़ेदार के लिए जन्नत मे ख़ुदा ने,
बनाया अलग ही मक़ाम है।
रोज़ेदार होंगे दाख़िल जिससे वो,
जन्नत का दरवाज़ा रयान है।
झुकता वही है सजदों में रब के,
जिसका मुक़म्मल ईमान है।
