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Haseeb Anwer

Abstract

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Haseeb Anwer

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रमज़ान

रमज़ान

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मैं रोज़ा रहू और तुम्हारे साथ इफ्तारी हो जॉए 

काश नफरतें ख़त्म हो और अपनी यारी हो जाए । 


इक महीना ख़ुदा की इबादत में मशगूल हो जाओ 

ताकि अपनी भी कुछ हश्र की तैयारी हो जाए ।


शहर में ताले पड़ गए और हम घरों में कैद बैठे हैं 

दुआ करों तुम की अब ये ख़त्म बीमारी हो जाए । 


कोई ग़म से परेशां , कोई नफरत के आग़ोश में है 

क्यू न मोहब्बत भी एक दूसरे की जिम्मेदारी हो जाए।



सब एक हो , मोहब्बत से रहना लाज़िम हो 'अनवर'

इस मुल्क में अब ऐसा भी बयान जारी हो जाए । 





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