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Haseeb Anwer

Others

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Haseeb Anwer

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इतवार जैसी है ।

इतवार जैसी है ।

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तेरी यादें भी बिल्कुल इस इतवार जैसी है

ना चाह कर भी तुझे चाहना बेकार जैसी है।


अब तो हर लफ्ज़ में तुम्हें ही समेटता हूँ मैं

ये पहली दफा नहीं अब हर बार जैसी है ।


लगाना आंखों में काजल ये ख़ुमार जैसी है

नज़र से फिर नज़र मिलाना बेकरार जैसी है


अपने बदन से यूँ दुपट्टा ना सरकने देना तुम

ये अदा भी तुम्हारी बेशुमार जैसी है ।


तुमसे मिलना और बिछड़ जाना त्यौहार जैसी है

हर शाम उसी राह पर भटकना इंतजार जैसी है।


तुम्हें पाने की चाहत में सौ बार सजदा किया

तुम्हारा मिलना भी कोई तलबगार जैसी है ।


इश्क़ में हर एक की हालत भी बीमार जैसी है

सब कुछ धुंधला सा है या फिर अंधकार जैसी है।


अपने नज़रों से वार करना छोड़ भी दो अब तुम

इस शहर में इश्क़ अब तो व्यापार जैसी है।


ये दुनिया अब अकेली नहीं पूरी बाजार जैसी है

कदम जहां भी रखो सारे घर बार जैसी है।


इश्क़ करने के अलावा और कुछ हो नही सकता

यहाँ के सारे लड़के अब लाचार जैसे हैं ।



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