किस्से सुनाता हूं ।
किस्से सुनाता हूं ।
चलो आज कुछ तुम्हें किस्से सुनाता हूं ,
थोड़ी अपनी और थोड़ी तुम्हारी बातें बताता हूं।
वो जब पहली बार हम मिले थे उन गलियों में
उन यादों को फिर से एक बार दोहराता हूँ।
मैंने तो आज तक कोई शायरी लिखी भी नही
बस तुम्हारी बातों को अपने शब्दों से सजाता हूँ।
मैं तन्हा रह भी लेता हूँ और थोड़ा बेख़बर भी
कभी मायुस बैठकर सिर्फ़ तुम्हें ही गुनगुनाता हूँ।
मुझें कोई दूसरा क्या समझ सकता है अब
उनकी सोच को मैं धुएँ की तरह उड़ाता हूँ।
तुम्हारे नाम का टैटू तो नहीं गुदवाया हूँ अब तक
हाँ तुम्हारे नाम को ही हमेशा दिल में बसाता हूँ।
जरूरी ये भी नही इश्क़ में शायरी करना,
अब दिल की बातों को लफ्ज़ों तक बस ले आता हूं।
चलो आज कुछ तुम्हें किस्से सुनाता हूं
थोड़ी अपनी थोड़ी तुम्हारी बातें बताता हूं।