रिश्तों का खून
रिश्तों का खून
कैसी हालात आई है ?
कैसा चढ़ा है जुनून ?
जहाँ नित- प्रतिदिन हो रहा
विश्वास के रिश्तों का खून !
जहाँ मिल रहा अपने हाथों ही
अपनों का कत्ल कर कलेजे को ठंडक
और दिल को सुकून।
न जाने लोगों को क्यों
मोह -माया के व्यर्थ बंधन में
अपने कर्त्तव्यपथ से विमुख
होने का चढ़ रखा है जुनून।
अपनी बलवती लोभ- लिप्सा के कारण
यहाँ रोज हो रहा विश्वास के रिश्तों का खून।
ये कैसी हालात आई है ?
ये कैसा चढ़ा है जुनून?
जहाँ नित -प्रतिदिन हो रहे हैं
विश्वास के रिश्तों का खून।