रिश्ते
रिश्ते
रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं ना जो पास है साथ है
उनसे हम दूर है जो दूर है उनसे नजदीकी कमाल की है।
रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं ना
कहने के लिए खून के अपने हैं और वक्त आने पर सब बेगाने, पराए हैं।
रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं ना
जो हमारे हैं उनसे हम बोल नहीं पाते दिल खोल नही पाते डर क्यों लगा रहता है
यह जान नहीं पाते।
रिश्ते भी कितने अजीब है ना जहा खोने का डर है वहां हम निडर बने बैठे हैं
जहां पाने की उम्मीद नहीं वहां हम बेखौफ है।
रिश्ते भी कितने अजीब है ना दूर बैठे लोगों से बिना झिझक बिना डर बोल देते हैं
दिल के हर राज हम सब खोल देते ।
तू भी कितने अजीब होते हैं ना
जिंदगी गुजरती है जिनके साथ उनसे हम बोल नहीं पाते
और वह अनकही सुन नहीं पाते।
रिश्ते भी कितने अजीब है ना जहां अपनापन प्यार होना चाहिए
वहां दिलों में मनमुटाव,बैर है खोट है
जहां प्यार मिलता है वह दूर है उनसे ना खून के रिश्ते हैं
और वह ना आपने हैं फिर भी दिल के करीब है।
रिश्ते भी कितने अजीब होते है ना
जहां सुकून होना चाहिए वहां परेशान है और जो हजारों किलोमीटर दूर बैठे
उनकी तलाश में हम लोग मृग कस्तूरी बन सफर पर निकल पड़े हैं।
रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं ना।