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Suresh Koundal

Abstract

4.9  

Suresh Koundal

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रिश्ता ही तो है

रिश्ता ही तो है

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किसी से प्रेम का रिश्ता  

किसी से दर्द का रिश्ता

क्या फर्क ये रिश्ता ही तो है।


कोई आये याद ज़ख्म की तरह

कोई आये याद मरहम की तरह

क्या फर्क ये रिश्ता ही तो है।


दिल में रहता कोई

दुश्मन की तरह।

रहता कोई रहबर की तरह

धड़कनो और साँसों का

क्या फर्क ये रिश्ता ही तो है।


ताना बाना है ये जीवन का

चलता अंतिम सांस तक।

कोई सुंदर कोई कुरूप

कोई कटु कोई मधुर।


मजबूरियों का जिम्मेदारियों का

क्या फर्क रिश्ता ही तो है।


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