STORYMIRROR

Ashish Pathak

Action

3  

Ashish Pathak

Action

रेप, शर्म की बात

रेप, शर्म की बात

2 mins
435

उस मासूम की दास्तां को मैं सुनाऊँ कैसे,

उसके साथ जो हुआ उसको बताऊँ कैसे,

बहुत दर्द भरी कहानी है एक मासूम सी जान की,

लोगो ने जो पाप किया मैं उसको बताऊँ कैसे।


ओ मुस्कान कही खो सी गई,

ओ पहचान अब कही खो सी गई,

नहीं होता उस दर्द का बयां जो लोगों ने मुझे दिये है,

मेरी हर खुशी की चाहत अब कही खो सी गई।


देख कर के भी अनदेखा कर दिया था लोगों ने मुझे,

अब तो बस इतना पता है कि

दुनिया से इंसानियत भी कहीं खो सी गई।

याद है मुझे ओ दिन,

जिस दिन पापियों ने जुल्म किया था मेरे साथ।


सब कुछ छूट गया था मेरा उस दिन,

बस इक साँसे ही थी जो चल रही थी मेरे साथ।

इतना सब कुछ होने के बाद ओ सिर्फ करते इसकी निंदा है,

हर बेटी शर्मिन्दा है, मेरे कातिल जिंदा है।


जो लोग करते थी बड़ी बड़ी बातें,

कि दुनिया को इसके बारे में कुछ बताएंगे,

आज वही मेरी जिंदगानी की इक कहानी बना गए।

तमाशा बना दिया है कुछ लोगों ने

एक बहन, बेटी की जिंदगी को।


और कुछ पूछा तो बस एक आम से रवानी बना गये

क्या गुजरी होगी मेरे ऊपर जब अत्याचार किया था लोगो ने,

लोगो को लगता है कि हम कहानी बना गए।

उनको क्या पता मेरे दर्द और दुख की बारे मे,

घर से निकलना मुश्किल कर दिया है कुछ अत्त्याचारो ने।


आखिर क्यों होता है ये मेरे साथ क्या तुमने कभी सोचा है, 

आखिर तुम्हे सोच कर के क्या मिलेगा तुम लोग ही तो हो,

जिसके वजह से ये सब होता है।

क्यों नही आवाज़ उठाते है लोग, 

बस करते इसकी निंदा हैं ,

हर बेटी शर्मिन्दा है, मेरे कातिल जिंदा हैं।


अब तो इंसानियत भी खो रही आज के इन इंसानो में,

बेच देते है इज़ज़त भी ये बीच बाजारों में।

सब कुछ मिल जाता है बाजारों में पर इज़्ज़त न मिल पाती है ,

क्यो करते है लोग येसा क्या उनको जरा सी भी सर्म नही आती है।

छोटे कपड़े नही ,छोटी तेरी सोच है,

न गिनती कर इंसानो में उनको , करते बेटियों से रेप है।


तू क्यों अपने आप को सबकी नजरों में गंदा करता हैं,

औरत को छेड़ता औऱ नीयत को गंदा करता है।

क्यो करते है लोग येसा जिसका परिणाम सिर्फ जेल है ,

बन जाती हूँ जिंदा लाश , वो कहते जिसको खेल है।

इतना सब कुछ सह कर के बेटी अभी भी जिंदा हैं, 

हर बेटीशर्मिंदा है , मेरे कातिल जिंदा हैं।

 

बहुत हुआ अपमान मेरा मैं इस लिएशर्मिंदा हु,

हाँ मैं वही हु जो इतनी जुल्म सह कर के भी जिंदा हूँ।

नहीं बचा सका कोई मेरी जान को मैं इस लिए शर्मिदा हूँ,

हाँ मैं वही हूँ जो इतनी जुल्म सह कर के भी जिंदा हूँ।


बहुत हुआ अत्याचार नारी पर,

अब और न मैं सहने दूंगी, 

जिस दिन रूप धरा दुर्गा का,

हर एक अपमान का बदला मैं लूँगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Action