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Vijay Kumar parashar "साखी"

Romance

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Romance

रातभर

रातभर

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साखी,में रोया तो बहुत था रात भर

दिल को सताया तो बहुत था रात भर

फिर भी तू ख्वाबो में भी न आई

में जागा तो बहुत था रात भर

चाँद को देख़ा, सितारों को देखा

अँधरो में खोया तो बहुत था रात भर

तुमसे मिलने की तलब इस कदर लगी

नींदों में चला तो बहुत था रात भर

अब तू इस दिल से मत चली जाना कंही

धड़कन से ज़्यादा गीत तेरा बहुत था रात भर

दिल से विजय


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