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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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रात से दिन

रात से दिन

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रातों को दिखाई देता है चाँद बहुत पास में 

पास का चाँद छिटका भी देता है अपनी चांदनी हर ओर

फिर भी आसपास उसके नजर आता है अन्धेरा ही.

चमकता चाँद कहाँ हटा पाया कभी धरती का अन्धेरा. 

उजास तक करना होता है इंतज़ार धरती को

उन कुछ घंटों तक 

जब तक किसी झील की लहरों में 

बह के डूब न जाए चाँद.

दूर से दिखाई देता है सवेरा धरती की पथराई आँखों को.

कहाँ रोक पाई धरती खुद किसी अँधेरे को

और कहाँ रुक गया उजाला धरती को परछाइयों में देखकर.



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