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Rajeev Ranjan

Tragedy

4.5  

Rajeev Ranjan

Tragedy

रात कली थी जो खिली

रात कली थी जो खिली

2 mins
333


रात कली थी जो खिली

मेरे दिल के उद्यान में,

मेरी हसीं हां मेरी ख़ुशी

मेरे हर एक अरमान में

रात कली थी जो खिली

मेरे दिल के उद्यान में


जानें कैसी चली हवाएं

मुरझा गया वो ख़्वाब सलोना

जिसकी आरज़ू करती थी मेरी रूह

मेरा मकसद था जिसका होना

कश्ती प्रीत की, जाकर के फसी

दिशा एं हाय तूफ़ान में


रात कली थी जो खिली

मेरे दिल के उद्यान में

अब वीराना मेरा शहर सुन्ना

ख्यालों में बस यादों कि रैना

टूटे वादों के लाशों संग


सुधियों की होती है पुरजोर जंग

ज़िन्दगी के इस सफर में

बेताब हूं अनजान मैं

कर बैठूं ना खता कोई

गुमशुदा होकर नादान मैं

रात कली थी जो खिली

मेरे दिल के उद्यान में


सांसों से जुड़ी थी महक उनकी

उनके चेहरे तक थी सफर दिल की

आती ना नजर अब नज़रों की तलब

प्यासा पड़ा है कबसे ये

 अपने ख़ुदा के अज़ान में

रात कली थी जो खिली

मेरे दिल के उद्यान में

सरसों की फूल सी थी वो

चंचल थी मन भावन थी

मुस्कुराहट की उपमा थी

वो चलती - फिरती सावन थी

रहती थी धड़कन बन


मेरे चहक के प्राण में

रात कली थी जो खिली

मेरे दिल के उद्यान में

चांद मेरा वो जिनसे रोशन था मैं


जिसका सुगंध बसा था मेरे कण- कण में

छन भर वो मुझमें उतरकर

प्यार का नूर भरकर

जाने कहां खो गया ?

ख्वाबों के आसमान में

रात कली थी जो खिली

मेरे दिल के उद्यान में।


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