रात ढलने को है
रात ढलने को है
रात ढलने को है चांद चलने को है
कुछ पता ही नहीं अभी तक तुम आए नहीं।
मन परेशान सा, सोच भटका रही
बेचैन ढूंढ़ती हैं नज़र, साया दिखे तो कहीं।
नींद से बोझिल हुईं पलकें झपकाए नहीं।
कुछ पता ही नहीं अभी तक तुम आए नहीं।
दर पे दस्तक हुई कदम वहाँ बढ़ चले
पर वो थी चंचल हवा जो मुझसे छल करे।।
थरथरायी आवाज़ शब्द गुम हो गए
कुछ पता ही नहीं अभी तक तुम आए नहीं।