राष्ट्रधर्म
राष्ट्रधर्म
रक्तरंजित धरा, सुलगती हवा
दावानल दिलों में दहला हुआ
कहीं नफरत, स्वार्थ की आग
आरोप-प्रत्यारोप के
घृणित उन्माद
सियासत के खेल में,
बरसों से झुलस रहा समाज।
सियासत के खेल में
नेताओं की चांदी है
जनता वहीं की वहीं
उन की बांदी बन खड़ी
कोई विकल्प तलाशना होगा
अधिकारों के लिए लड़ना होगा
कर्तव्यों के लिए सजग हो
राष्ट्रधर्म सबको निभाना होगा।
सियासत के दांव-पेंचों से
बाहर निकल
सद्भाव जगा लोगों में
अंतर्मन शीतल करना होगा।