रामयण२५; जनक जी का आगमन
रामयण२५; जनक जी का आगमन
मुनि वशिष्ठ पूछे दूतों से
कैसे हैं श्री जनक हमारे
दूत बोले, जनक जी हैं आ रहे
उनसे पहले हम हैं पधारे।
भरत के राम प्रेम को सुनकर
जनक जी चल पड़े थे मिथिला से
पहुँच गए प्रयागराज वो
मिलने को वो आतुर खड़े थे।
पर्वत कामदनाथ देख कर
जनक जी ने छोड़ा था रथ
उत्साह था जल्दी मिलूं राम को
दर्शन के लोभ से सुगम हुआ पथ।
भाइयों सहित राम गए वहां
अपने आश्रम में उनको लाये
वट बृक्ष के नीचे बैठें सब
मुनि लोग नित कथा सुनाएँ।
सुनयना पत्नी जनकराज की
माताओं के पास गयी थीं
दोनों और बहे प्रेम के आँसू
साथ उनके सीता भी वहीँ थीं।
सुनयना कहे सब माताओं से
मुनि याग्वल्क्य पहले ही बताएं
देवगणो का कार्य करने
रामचंद्र जी वन को जाएं।
काम देवों का पूरा करके
अयोध्या में वापिस आएँगे
राजतिलक फिर होगा उनका
अचल राज्य अवध का पाएंगे।
माताओं की आज्ञा लेकर
सुनयना सीता को साथ ले आएं
जनक जी के पास ले गयीं उन्हें
सीता को वो ह्रदय से लगाए।
तपस्विनी वेश में सीता को देखा
आचरण शुद्ध, सौम्य चरित्र
मन में हर्ष, बेटी उनकी ने
दोनों कुल कर दिए पवित्र।
सीता को भेजा आश्रम में
उस के मन की बात जानकर
जनक, सुनयना करें बड़ाई
देख प्रेम, भरत का राम पर।
सुबह उठे प्रभु गुरु से बोले
दुखी सभी, व्याकुल सबका चित
जो उचित लगे आप कीजिए
आप के हाथ में सबका है हित।
वशिष्ठ कहें हे राम सुनो
तुम्हारे बिन सब दुखी हैं
और जो भी जग में सुखी है
तुम्हारे से ही वो सुखी है।
वशिष्ठ पहुंचे जनक जी पास कहें
दुविधा दूर करो महाराज
आप तो हैं भंडार ज्ञान के
इस संकट से उबारो आज।
जनक जी पूछे श्री भरत से
क्या कहा जाये रामचंद्र को
भरत कहें जो धर्म है कहता
सबके लिए जो हितकारी हो।