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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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रामायण ६० - शिव-पार्वती वार्तालाप

रामायण ६० - शिव-पार्वती वार्तालाप

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ये सब कथा सुनाएं शिवजी 

मन से सुनतीं पार्वती हैं 

कहें अब संदेह न रहा मुझे 

प्रताप राम का जान गयी मैं| 


आप कहें कि काकभुशुण्डिने 

गरुड़ को थी ये कथा सुनाई 

इतनी अचल राम की भक्ति 

कैसे एक कौए ने पाई| 


कैसे पाया शरीर कौए का 

और फिर इतना ज्ञान था पाया 

गरुड़ तो प्रभु का वाहन है 

काकभुशुण्डि के पास क्यों आया| 


शिव कहें फिर पार्वती से 

गरुड़ भी ऐसे प्रश्न थे लाये 

सुनो ध्यान लगाकर तुम अब 

हम तुमको ये कथा सुनाएँ| 


तुम पहले दक्ष पुत्री थी

सती थी तुम, तुम ये जानो सब 

पिता ने किया अपमान तुम्हारा 

प्राण त्यागे थे तुमने तब| 


विरह में मैं भटकता फिरता 

एक दिन पहुंचा नील पर्वत पर 

मुझे पर्वत वो बहुत भा गया 

चार शिखर उसके बड़े सुँदर| 


हर शिखर पर विशाल पेड़ एक 

बरगद, पीपल, पाकर और आम 

सुंदर एक तालाब, जहां पर 

काकभुशुण्डि करें विश्राम|


हरि भजन दिन रात करें वो 

पीपल के नीचे ध्यान हैं धरते 

पाकर के नीचे यज्ञ करें वो 

आम के नीचे पूजा करते| 


हरि कथाओं के प्रसंग सब 

बरगद के नीचे होते हैं 

अनेक तरह के पक्षी आकर 

उन कथाओं को सुनते हैं| 


तालाब में जो हंस हैं रहते 

वो भी आते कथा को सुनने 

कौतुक देख आनंद मुझे हुआ 

हंस शरीर तब धरा था मैंने| 


कुछ समय मैं रहा वहां पर 

रघुनाथ का गान सुना था 

लौट आया था फिर कैलाश को 

सुनकर सब सुख बहुत मिला था| 


अब इतिहास सुनाऊँ मैं तुम्हे 

गरुड़ गए क्यों पास काक के 

युद्ध में राम नागपाश में बंध गए 

ब्रह्मा ने भेजा गरुड़ को काटने| 


बंधन काट दिए थे राम के 

तब गरुड़ को हुआ संदेह ये 

करें विचार, ये तो परमेश्वर 

प्रभाव मुझे कोई क्यों न दिखे| 


वो हो गए थे मोह के वश 

हृदय में उनके भ्रम था छाया 

नारद के जब पास गए वो 

वो सोचें ये प्रभु की माया| 


ज्ञानिओं का भी चित हर लेती 

मुझे भी है कई बार नचाया 

मेरे समझाने से मिटे ये मोह ना 

ब्रह्मा जी के पास भिजवाया| 


ब्रह्मा जी के पास गए वो 

बोले ब्रह्मा, इसमें आश्चर्य नहीं 

मुझे भी इसने भरमाया है 

शिव दूर करें इसे, तुम जाओ वहीँ| 


मेरे पास गरुड़ थे आये 

मैंने कहा, भेजूं मैं तुम्हे वहां 

जहाँ संदेह दूर हो जाये 

नित्य कथा प्रभु की होती जहाँ| 


नील पर्वत पर भेजा उसको 

जहाँ काकभुशुण्डि रहे हैं 

बरगद के नीचे बैठ वो 

पक्षिओं से सब कथा कहें हैं|


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