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Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

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रामायण ३२;पम्पा के तट पर

रामायण ३२;पम्पा के तट पर

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पहुंचे दोनों पम्पा तट पर

तालाब वो था बड़ा सुंदर

स्नान किया थकान मिट गयी

अमृत सा जल उसके अंदर |


नारद जी पहुंचे वहां पर

उनको ये सोच थी भारी

ये सब हो रहा मेरी वजह से

मेरी गलती सारी की सारी |


नारद बोले वर दो रघुनाथ जी

राम नाम हो सबसे बढ़कर

एक बार कोई मुख से राम कहे

तर जाये इस नाम को लेकर |


एवमस्तु कहा तब प्रभु ने

नारद को फिर दिया ज्ञान है

मेरा भक्त मेरे लिए जैसे

मैं माता, वो शिशु समान है |


श्री रघुनाथ चले आगे फिर 

ऋष्यमुख पर्वत निकट था आया

मंत्रियों सहित रहते सुग्रीव वहां

ये पर्वत था उनको भाया |


देखा दो अतुलित बलशाली

 मनुष्य उनकी तरफ़ आ रहे

देख के राम और लक्ष्मण को

भयभीत होते वो जा रहे |


सुग्रीव बोले हनुमान से कि

तुम ब्राह्मण रूप धर जाओ वहां

पता करो दोनों कौन हैं

क्या करने आये यहाँ |


अगर बालि ने भेजा हो

या कुटिल हों , दोनों मन से

कर देना एक इशारा ताकि

सतर्क हो जाऊं मैं उनसे |


हनुमान उनके पास थे पहुंचे

ब्राह्मण रूप किया धारण

पूछें आप का नाम पता क्या

वन में विचरो किस कारण |


प्रश्न हनुमान का सुनके

राम दिया था ये उत्तर

राम और लक्ष्मण नाम हमारे 

हम दोनों दशरथ पुत्र |


राक्षस ने हर लिया स्त्री को

खोजते फिरते हम आ रहे 

हमने चरित्र अपना कहा

आप अब अपना कहें |


पहचाना प्रभु को, पकडे चरण

पृथ्वी पर गिर पड़े हनुमान

स्तुति करें , माफ़ी मांगे कहें

पहले सका था ना मैं जान |


एक तो मैं मंदबुद्धि हूँ

दूसरा मोह के हूँ वश में

तीसरा मैं अज्ञानी हूँ, पर

आप बसे मेरी नस नस में |


असली रूप में आ गए कपि

ह्रदय में था प्रेम छाया

प्रभु कहें तुम प्रिय सेवक मेरे

उनको ह्रदय से लगाया |


स्वामी को प्रसन्न देख

दुःख दूर हुआ, वो प्रभु से कहें

इसी पर्वत पर, कुछ दूरी पर

वानर राज सुग्रीव रहें |


मित्रता कीजिये उनसे और

कर दीजिये निर्भय उनको

सहायता करेंगे पूरी आपकी

सीता जी की खोज में वो |


दोनों को चढ़ा कर पीठ पर

ले आये सुग्रीव के पास

गले लगकर मिले वो दोनों

जैसे मित्र दो मिले हों ख़ास |


 

 


 





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