रामायण ३२;पम्पा के तट पर
रामायण ३२;पम्पा के तट पर
पहुंचे दोनों पम्पा तट पर
तालाब वो था बड़ा सुंदर
स्नान किया थकान मिट गयी
अमृत सा जल उसके अंदर |
नारद जी पहुंचे वहां पर
उनको ये सोच थी भारी
ये सब हो रहा मेरी वजह से
मेरी गलती सारी की सारी |
नारद बोले वर दो रघुनाथ जी
राम नाम हो सबसे बढ़कर
एक बार कोई मुख से राम कहे
तर जाये इस नाम को लेकर |
एवमस्तु कहा तब प्रभु ने
नारद को फिर दिया ज्ञान है
मेरा भक्त मेरे लिए जैसे
मैं माता, वो शिशु समान है |
श्री रघुनाथ चले आगे फिर
ऋष्यमुख पर्वत निकट था आया
मंत्रियों सहित रहते सुग्रीव वहां
ये पर्वत था उनको भाया |
देखा दो अतुलित बलशाली
मनुष्य उनकी तरफ़ आ रहे
देख के राम और लक्ष्मण को
भयभीत होते वो जा रहे |
सुग्रीव बोले हनुमान से कि
तुम ब्राह्मण रूप धर जाओ वहां
पता करो दोनों कौन हैं
क्या करने आये यहाँ |
अगर बालि ने भेजा हो
या कुटिल हों , दोनों मन से
कर देना एक इशारा ताकि
सतर्क हो जाऊं मैं उनसे |
हनुमान उनके पास थे पहुंचे
ब्राह्मण रूप किया धारण
पूछें आप का नाम पता क्या
वन में विचरो किस कारण |
प्रश्न हनुमान का सुनके
राम दिया था ये उत्तर
राम और लक्ष्मण नाम हमारे
हम दोनों दशरथ पुत्र |
राक्षस ने हर लिया स्त्री को
खोजते फिरते हम आ रहे
हमने चरित्र अपना कहा
आप अब अपना कहें |
पहचाना प्रभु को, पकडे चरण
पृथ्वी पर गिर पड़े हनुमान
स्तुति करें , माफ़ी मांगे कहें
पहले सका था ना मैं जान |
एक तो मैं मंदबुद्धि हूँ
दूसरा मोह के हूँ वश में
तीसरा मैं अज्ञानी हूँ, पर
आप बसे मेरी नस नस में |
असली रूप में आ गए कपि
ह्रदय में था प्रेम छाया
प्रभु कहें तुम प्रिय सेवक मेरे
उनको ह्रदय से लगाया |
स्वामी को प्रसन्न देख
दुःख दूर हुआ, वो प्रभु से कहें
इसी पर्वत पर, कुछ दूरी पर
वानर राज सुग्रीव रहें |
मित्रता कीजिये उनसे और
कर दीजिये निर्भय उनको
सहायता करेंगे पूरी आपकी
सीता जी की खोज में वो |
दोनों को चढ़ा कर पीठ पर
ले आये सुग्रीव के पास
गले लगकर मिले वो दोनों
जैसे मित्र दो मिले हों ख़ास |