राही...
राही...
ओ राही अब राह दिखाना
मानवता के फूल खिलाना
सत्य डगर में चलना होगा
एक सॉंच में ढ़लना होगा
हे राही तुम स्वयं अकेला
तुम ही पथ पर नित अवहेला
क्या है जीवन आज बताना
कॉंटों को भी प्यार सिखाना
ओ राही अब....
सपने सारे सच भी होंगे
नेह भाव के रज बरसेंगे
खोना-पाना चलता रहता
जीवन यह तो कितना सहता
भाव प्रेम का सदा जगाना
निष्ठुर जग को तुम हरसाना
ओ राही अब....