प्यासा...
प्यासा...
दिल की प्यास बुझती नहीं...
उन गुज़रे लम्हों की
सुनहरी यादों के मौसम में
मैं आदतन डूबता जाता हूँ...!
ये क्या नशा है उन गुज़रे लम्हों की
जो मैं जाम बिन पिए ही
मैखाना-ए-दिल के आइने में
अपना चेहरा पहचान नहीं पाता हूँ...।
दिल की प्यास बुझती नहीं...
उन गुज़रे लम्हों की
सुनहरी यादों के मौसम में
मैं आदतन डूबता जाता हूँ...!
ये क्या नशा है उन गुज़रे लम्हों की
जो मैं जाम बिन पिए ही
मैखाना-ए-दिल के आइने में
अपना चेहरा पहचान नहीं पाता हूँ...।