प्यारी सी खता
प्यारी सी खता
करता हूं मैं फ़क्र खुद पर
कि मेरी उस से यारी है
दादा दादी की संग ओ सोहबत
जिसे आज भी प्यारी है।
पीला उसको फबता है बहुत
गुलाबी में लगती प्यारी है
जब पहने वो साड़ी मरून
वो लगती सबसे न्यारी है।
करते हैं सब बातें उसकी
उसके मिजाज़ में खुद्दारी है
सबसे जुदा अदाएं उसकी
ऐसी दोस्त हमारी है।
माना है मुझसे दूर बहुत
पर यादें उसकी जारी है
गर इश्क़ खता है कर लेने दो
ये सबसे प्यारी खता हमारी है।
किया होगा इश्क़ उसने भी कभी
अब मेरे इश्क़ की बारी है
मुझे नहीं चाहिए उसकी ख़ुशियाँ
उसके गमों में हिस्सेदारी है ।
उसके जैसी बस वो ही बनी है
वो ख़ुदा की रचना न्यारी है
जितना लिख तू उतना कम है
अब देव की कलम पुकारी है।

