प्यार की राहें
प्यार की राहें
ओ सखि तुम क्यों नयना हो गड़ाये,
पिया के इन्तेज़ार में अपने प्यार की धुन में उनकी राहें निहारे।
नयना भी उनकी याद में है भिगाये,
पिया मिलन में अपने दिन रात है गवाये।
"प्यार की राह" में अपने मन को बिछाये।
भूख प्यास की सुधी खोय मन को सुकून न एक पल आये।
पिया मिलन की आस में अपने नैन राह में बिछाये।
अब तो उन यादों से बाहर आ जा प्रिये
क्योंकि पिया अब न राह में नज़र आये।
यू ही आंसू बहा कर क्यों अपने कपोल को भिगाए।
अधर की लाली अब मिट गई, कपोल भी अपनी आभा बटोर लिए।
पिया मिलन की इन "प्यार की राहों" में अब बैचेन मन लिए कब तक तकती रहोगी ये राहें, अब तो खुद को सवार लो एक बार दर्पण में झांक लो।
सब लोक लाज को भुल कर एक बार अपने आप को प्रेम से दर्पण में सवारों।
क्या पता पिया मिलन की आस की लगन सफल होई जाए।
कुछ ही क्षण जब बीतें खुद को सवांरे।
पिया को आते देख लिए राह में लोग सारे।
तब जाकर प्रीतम अपने पिया से लिपट कर अपने निर्मल मन से अश्रु खुब बहाये, और "प्यार की राहें " का आप बीती खुब सुनाई।

