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Pratima Yadav

Others

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Pratima Yadav

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मन के विचार

मन के विचार

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मन में रिद्म बजा और मन बावला हो चला,

अब मन के विचार उफन पड़ा।


कब मिटेगी यह मन की टीस,

जब याद तेरी आनी शुरू हो चली।


मन के प्रीत अब किसे सुनाऊँ....

मेरा प्रीतम भी अब रूठ चला।


कैसे मिटाऊँ इस मन की उलझन, 

पायल की घुंघरू भी अब टूट चला।


यह दिन बीते रैन बसेरे में,

ये मन के धागे जो निर्मल संग जोड़ चला।


है याद अब बहुत आती मन से मेरी,

पर क्यों तेरा मन इतना कठोर हो चला??


मन अब बावला हो चला,

मन में विचार अब उमड़ चला।


मन में रिद्म बजा और मन प्रेम के गीत संगीत में डूबकर कलरव कर चला।


कोयल की मीठी चहचहाहट सुन मन निर्मल में खो चला।

तब प्रीतम का मन झूम उठा,

मन उमंग में खो चला।


"मन के विचार" है ही ऐसे,

जो डूबा वो पार हो चला।


        


         



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