पूछिये
पूछिये
शाख से जुदा पत्ते की निशानी पूछिये।
किसी टूटे हुए पैमाने की जुबानी पूछिये।।
मैखाने में पी है रिंंदों ने सदा छक कर।
आँखों से छलकते जाम की रवानी पूछिये।।
महफिल-ए-यारां में है जवां मस्ती-ए-शबाब।
मेरे गरीबखाने की तनहाई पूछिये।।
किस कदर फेरी है निगाह कत्ल करके कातिल ने।
चोट खाये जिगर की हैरानी पूछिये।।
गुलिस्तां है महकते गुलों से गुलजार।
खिजाजदः दिल की वीरानी पूछिये।।
सुनने को हैं जहां के सैंकड़ों अफसाने।
हमसे ना आप हमारी कहानी पूछिये।।