पूछे माँ की नम सी आँखें
पूछे माँ की नम सी आँखें
ना कर मुझको गर्भ से बाहर,
बाहर बैठे भक्षी अनेक,
जिस्म को नोंच खाते नरभक्षी
बेटी की बोटी देते फेंक,
ना मंदिर मस्जिद की दीवारों में,
ना घर गलियों चौबारों में,
बिटिया तेरी बच पायी है बस,
नौ महीने कोख की चाहरदीवारी में!
या तो मुझको अब कृपाण थमा दे,
या रण वीरांगना बना दे,
अबला नारी अब ना सोहे मोहे,
बेहतर कोख में मुझे सुला दे !
पूछे माँ की नम सी आँखें,
क्या मेरे कलेजे का रोना देखा,
महफूज़ रहे जहाँ बिटिया मेरी,
कोई ऐसा भी कोना देखा?