पुरवा सुनाएगी
पुरवा सुनाएगी
राह तकते बीते दिन-रैन
न तुम आए न आए चैन
बीती रात कमलदल फूले
अलि की गूँज से उपवन गूँजे
ओस सिमटकर गुम हो गई
आस बिखर कहीं गुम हो गई
नीर नैनों से छलक उठे
सपने विरहाग्नि में जल उठे
बेपरवाह थी तेरी चाह में
चल दी काँटों भरी राह में
अब न आगे और न पीछे
मझधार में फंसी कुछ न सूझे
सुनहरे स्वप्न सब खाक हुए
जिद्द में जीवन बर्बाद किए
भूल हम जैसी न करना कोई
प्रीत भ्रम है न फंसना कोई
आँख खोलो नई भोर को देखो
जीवन के सुनहरे पल को न खो
रात बीतेगी सुबह आएगी
बहती हुई पवन पुरवा सुनाएगी।

