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Rajeshwar Mandal

Classics

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Rajeshwar Mandal

Classics

पुरुष

पुरुष

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जब कवि पैदा हुआ

नर्स ने कहा बेटा हुआ

सबके चेहरे थी खिली खिली 

और प्रतिक्रियाएं मिली जुली 


दादा बोला राजा बनेगा

दादी बोली कुल का दीप

चाचा बोला कृष्ण कन्हैया

चाची गुनगुनायी मधुर संगीत


बचपना लाड़ प्यार में बिता

किशोरावस्था गया अल्हड़पन में

जवानी जिम्मेदारी एक साथ आई

सुख चैन गया ज्यों खंडहर में


न दिन में शकुन न रात में चैन

बड़ी मुश्किल से घंटे दो घंटे सोना है

पुरुष वर्ग में जब पैदा हुए हो तो

अब नित दिन 

अपेक्षा और उपेक्षा के बीच जीना है


क्या फर्क पड़ता है

आप अफसर हैं या अर्दली

पागल है या बेवड़ा

हर पल हर हाल में

धनोपार्जन करना है 

उन्हीं टिप्पणी कारों के लिए

जो ये उपमा रचे हैं तुम्हारे लिए


कभी बेटा नाराज कभी बहु नाराज

नाराज होंगे सारे रिश्तेदार 

मुमकिन है करेले पर नीम भारी

भार्या का भी होगा ऐसा ही व्यवहार 


घर में सुख वर्षा के खातिर

रात दिन तूझे खटना है

बच्चों से लेकर बड़ों तक

सबके अरमानों पर खड़ा उतरना है


आवश्यकताओं पर महंगाई भारी

कैसे बैठाएं सामंजस्य बड़ी ही लाचारी 

समस्याओं के बीच रामसेतु बन

अरमानों का मंझधार पार लगाना है

खुद के ख्वाहिशों को रख हासिये पर

सबके चेहरे पर मुस्कान लाना है


कभी किसी बात पर दिल जब टुटे

तनिक भी नहीं घबराना है

अश्रुकण को मोती समझ

आंखों में ही छुपाना है

कौन आयेगा तुझे मनाने

हृदय वेदना पी सो जाना है

क्योंकि सुबह उठकर

फिर काम पर जाना है।


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